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लिव इन रिलेशनशिप एक विवादास्पद लेकिन modern life के लिए एक अनूठा रिश्ता है जिसमे शादी की पुरानी मान्यता को दरकिनार करते हुए जोड़े साथ रहते है और ठीक उसी तरह से अपनी जिम्मेदारी एक दूसरे के लिए निभाते है जैसे वो शादी करने के बाद करते लेकिन इसमें जो अलग है वो है किसी भी तरह के नैतिक दबाव का नहीं होना और अगर वो चाहे तो कभी भी अलग हो सकते है और अगर इसमें से सामाजिक और सदियों से चली आ रही कुछ धार्मिक मान्यताओं को अलग करदे तो कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि दो वयस्क जो अपने बारे में ठीक से भला बुरा सोच सकते है और जिनकी मानसिक स्थिति ठीक हो वो यह फैसला ले सकते है और तय कर सकते है कि उन्हें कैसे और किसके साथ अपनी जिन्दगी व्यतीत करनी है फिर चाहे उस रिश्ते को कोई नाम दिया जाये या नहीं. अगर आप “लोग क्या कहेंगे” से आगे जाकर कुछ अच्छा अपने लिए करना चाहते है तो मेरे ख्याल से इसे किसी भी स्तर पर गलत नहीं कहा जाना चाहिए.
आजकल बड़े शहरों में रहने वालों के बीच में यह रिलेशन बहुत तेजी से डेवलप हो रहा है, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोगों को अब इस रिश्ते को स्वीकारने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए. लिव इन पार्टनर को अपने साथी का खर्च नहीं उठाना पड़ता है, कमरे के बेड से लेकर खाने-पीने की चीजों तक में दोनों 50-50 भागीदार होते हैं जो कि युवाओं को काफी भाता है इसी कारण दोनों शादी के बजाय लिव इन पार्टनर बनने की कोशिश कर रहे हैं. लिव इन में रहने वालों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है. जबकि शादी के बाद सीधे तौर पर पति के ऊपर पत्नी की जिम्मेदारी आ जाती है. अगर आप किसी के साथ 24 घंटे रहते हैं, तो आप उस इंसान के बारे में हर चीज जान लेते हैं, जबकि शादी में ऐसा नहीं होता है. अगर आप का मन आपके साथी के साथ बैठा तो ठीक नहीं तो आप अपने रस्ते और हम अपने. लिव इन रिलेशन में इंसान को पूरी आजादी देती है इसलिए रिलेशनशिप के बाद भी कपल अपनी लाइफ जी सकते हैं अपने तरीकों से जबकि शादी के बाद यह स्थिति हमेशा नहीं रहती है. जिंदगी के इस दौर में व्यक्ति को लिव इन के रूप में एक साथी मिल जाता है जो उसके अकेला नहीं रहने देता है और उन पर शादी और रस्मों के बंधन में बंधा नहीं होता है इसलिए दोनों साथ होकर भी अकेले-अकेले रहते हैं, यह भी एक बड़ा कारण हैं मैट्रों लाइफ में लिव इन रिलेशन के बढ़ने का.
हालाँकि सामाजिक स्तर पर दो वयस्कों का एक साथ रहना कुछ बेवकूफ लोगो को गवारा हो या नहीं जो मानवीय मूल अधिकारो का सम्मान नहीं करते हो लेकिन कानूनी स्तर पर सुप्रीम कोर्ट ने काफी समय तक चल रही इस दुविधा को इस तरह दूर किया है कि “ यदि कोई भी जोड़ा एक लम्बे समय तक बिना शादी के साथ रहता है यानि लिव इन में रहता तो कोर्ट उसे शादीशुदा जोड़े की मान्यता दे देगा और साथी की मौत के बाद महिला की उस पुरुष कि सम्पति में भी हिस्सेदारी होगी और अगर किसी विवाद की स्थिति होती है तो महिला को अविवाहित साबित करने की जिम्मेदारी प्रतिवादी पक्ष की होगी.” इसलिए हम कह सकते है समाज के कुछ लोग या तबका इस बात का विरोध करते हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट और कानूनी रूप से लिव इन एकदम उचित है और इसे कानूनी सुरक्षा भी प्राप्त है.
असल में विवाह न केवल भारत में बल्कि बाकि संस्कृतियों में भी पवित्र माना गया है और इसे धार्मिक भावना से भी जोड़कर देखते है जिसमे partners अपने जीवनसाथी के साथ जीवनभर के लिए loyel रहने का प्रण लेते है और इसे इतना पवित्र और खास समझे जाने के पीछे महिला की सुरक्षा निहित है क्योंकि हम सब जानते है एक स्त्री को लेकर शुरू से मानसिकता होती है कि उसे पराये घर जाना है जबकि जिस घर में उसे जाना है उसके लिए भी अगर ऐसा माहौल हो तो मुश्किल होती है एक स्त्री के अस्तित्व के लिए इसलिए तो शादी के बाद कानूनी तौर पर उसे अपने पति की जायदाद में आधा हिस्सेदार माना गया है और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में भी यही हित निहित है स्त्री की सामाजिक सुरक्षा जिसे लेकर लिवे इन को भी एक जायज रिश्ता माना गया है.
law के अनुसार जो भी जोड़े विवाह के लिए सक्षम है लेकिन फिर भी वो बिना विवाह के एक साथ रह रहे है तो इसे live in realatioship कहा जाता है बस वो मानसिक तौर पर सही हो और अपना हित और अहित समझ सकते हो और कानूनन उसी तरह की सुरक्षा इसमें लागू होती है जो विवाह के उपरांत होती है बस दोनों में से कोई भी तलाकशुदा नहीं हो और ना ही उनका पहले विवाह हुआ हो. विवाहेतर संबध जो होते है उन्हें इस श्रेणी में नहीं गिना जाता है और live in relationship को कानूनी मान्यता के लिए जरुरी है कि वो सालों से एक साथ रह रहे हो. लिव इन में साथ रहने वाले जोड़े चूँकि law के तरह विवाहित नहीं होते है इसलिए इन पर साथ रहने का कोई बंधन नहीं होता है और इन्हें अलग होने के लिए तलाक जैसी प्रक्रिया से नहीं गुजरना होता है इसलिए कुछ छोटी छोटी बातें और भी है जो विवाह को कानूनी रूप से भी live in relationship से अलग करती है.
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