देशभर में 26 जनवरी को 69वां गणतंत्र दिवस मनाया गया. अवसर पर विजय चौक से ऐतिहासिक लालकिले तक
भारत की विविधता समेत आन, बान और शान का शानदार नजारा देखा गया. इस वर्ष
गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में 10 आसियान देशों के
नेताओं एवं शासनाध्यक्षों की मौजूदगी रही. राजपथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में प्राचीन काल से चली आ
रही भारत की अनूठी एकता में पिरोई विविधताओं वाली विरासत, आधुनिक युग की
विभिन्न क्षेत्रों की उसकी उपलब्धियां और देश की सुरक्षा की गारंटी देने
वाली फौज की क्षमता का भव्य प्रदर्शन हुआ. राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में सलामी मंच पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद,
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ 10 आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने
भी शिरकत की. आसियान देशों के नेताओं ने जयपुरी बांधनी चुन्नी ओढ़ कर समारोह में हिस्सा
लिया. सलामी मंच पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भव्य परेड की सलामी ली और
10 आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी में राजपथ पर भारत की
संस्कृति के रंगों और रक्षा क्षेत्र की ताकत का प्रदर्शन किया गया. परेड के
बाद पीएम मोदी ने राजपथ पर मौजूद दर्शकों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया.
सुबह करीब 10 बजे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तिरंगा फहराया.
राष्ट्रगान की धुन के बीच 21 तोपों की सलामी के साथ परेड शुरू हुई. परेड से
पहले सलामी मंच पर भारतीय वायु सेना के गरुड़ कमांडो ज्योति प्रकाश निराला
को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. आंखों में गर्व का भाव लिये
कमांडो निराला की पत्नी सुषमानंद और मां मालती देवी ने राष्ट्रपति से
सम्मान ग्रहण किया. इस दौरान राष्ट्रपति भावुक दिखे. वर्ष 2018 के परेड में जहां सारी दुनिया में सबसे अधिक विविधता वाले
देश भारत को एक सिरे में पिरोने वाली उसकी हर कोने की सांस्कृतिक समृद्धि
को दर्शाया गया. वहीं अत्याधुनिक हथियारों, मिसाइलों, विमानों और भारतीय
सैनिकों के दस्तों ने देश के किसी भी चुनौती से निपट सकने की ताकत का अहसास
कराया. सैन्य ताकत की परेड के दौरान रूद्र अैर ध्रुव का डायमंड फॉर्मेशन का
भी प्रदर्शन किया गया. इसके अलावा नौसेना की मार्चिंग टुकड़ी और नौसेना की
झांकी भी दिखी जिसमें आईएनएस विक्रांत को पेश किया गया. गणतंत्र दिवस परेड में नारी शक्ति का शानदार प्रदर्शन देखने को
मिला. वायु सेना के मार्चिंग दस्ते के बाद वायु सेना की भी एक झांकी पेश की
गई जिसमें महिला शक्ति और स्वदेशी को प्रदर्शित किया गया. बीएसएफ के महिला
मोटर साइकिल सवार दस्ते ने अद्भुद करतब दिखाये.
मुख्य मंच पर उपस्थित रहे आसियान नेता
आसियान-भारत शिखर बैठक में भाग लेने के लिए 25 जनवरी को नई दिल्ली पहुंचे
सभी नेताओं ने आज देश के 69वें गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के
रूप में शिरकत की. राजपथ पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी के साथ सभी नेता मुख्य मंच पर उपस्थित रहे. बताया जाता है कि आसियान के साथ 28 जनवरी 1992 को भारत का डायलॉग
पार्टनरशिप स्थापित होने के बाद हमारे संबंध काफी मजबूत हुए हैं. आज
आसियान, भारत का सामरिक सहयोगी है. भारत और आसियान के बीच 30 वार्ता तंत्र
हैं. ऐसे में एक अभूतपूर्व कदम के तहत 10 आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्ष/
शासनाध्यक्षों को गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया
गया था. बता
दें कि भारत की एक्ट ईस्ट नीति दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ उसके
प्राचीन संबंधों को बेहतर बनाने के साथ ही राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और
सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से पुन:स्थापित करते हैं. भारत-आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन भारत-आसियान संबंधों के 25 साल पूरे होने
के मौके पर आयोजित किया गया है. यह पहल ऐसे समय हुई है जब क्षेत्र में चीन
का आर्थिक और सैन्य दखल बढ़ रहा है.
26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस
26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, लेकिन इसी तारीख को ही भारत एक
लोकतांत्रिक गणराज्य क्यों बना? इतिहास के पन्नों को खंगालें तो पता चलता
है कि भारतीय नेता किसी ऐसे दिन संविधान लागू करना चाहते थे जो राष्ट्रीय
गौरव का प्रतीक रहा हो. इसका मतलब साफ था कि भारत के लिए 26 जनवरी की तारीख
का ऐतिहासिक महत्व था. दरअसल, स्वतंत्रता सेनानियों ने तीस के दशक में ही
देश को आजाद कराने की तारीख तय कर ली थी. कांग्रेस ने देश को स्वतंत्रता
दिलाने के लिए 26 जनवरी 1930 की तरीख तय की थी. 31 दिसंबर 1931 को लाहौर
में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा फहराते हुए पूर्ण स्वराज की मांग कर
दी थी. जब संविधान लागू करने की घड़ी आई तो पूर्ण स्वराज की मुहिम की नींव
रखने वाले दिन की तारीख को ही इसके लिए चुना गया. 26 जनवरी 1950 को जब
संविधान लागू हुआ तो गणतंत्र दिवस के साथ ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ भी मनाया
गया.
भारत का संविधान बनाने में नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. संविधान
हाथ से लिखा गया था और इसे तैयार करने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन का समय
लगा था. भारत की संविधान दुनिया का सबसे बड़ा हस्त लिखित संविधान कहा जाता
है. डॉक्टर भीमराव अंबेडर संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे. सविधान
के लिए पहली बार 9 दिसंबर 1946 को संसद के सभागार में संविधान सभा
दस्तावेजों को लेकर इकट्ठा हुई थी. संसद के पहले सत्र में शुरू हुई बहस में
292 सदस्यों में से 207 सदस्यों ने हिस्सा लिया था, जो कि तीन महीने तक
चली थी. संविधान सभा के सदस्यों के प्रांतीय विधानसभा चुनाव कराकर चुना गया
था. इसके लिए अंग्रेजों ने 1946 में एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा था. चुने
हुए सदस्यों में सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू
और पंडित जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे. 3 वर्षों में संविधान सभा के 165 दिनों में 11 सत्र हुए. 9 दिसंबर 1949
को संविधान का ड्राफ्ट संविधान सभा ने अपना लिया और करीब एक मीहने के बाद
26 जनवरी 1950 को पूर्ण स्वराज की मुहिम शुरू करने वाले दिन इसे लागू कर
दिया गया. दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस की पहली परेड 1955 में हुई थी.
हाथ से लिखा गया भारतीय संविधान संसद के पुस्तकालय में आज भी सुरक्षित है.
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