आपराधिक केस में सज़ा पाने वाले लोगों के राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी बने रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं. देश की शीर्ष अदालत ने
मोदी सरकार से सवाल किया है कि जब कोई अपराधी चुनाव नहीं लड़ सकता, तो वह
किसी भी पार्टी का प्रमुख कैसे बन सकता है? चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इसे
कोर्ट के फैसले के खिलाफ बताते हुए केंद्र सरकार से तीन सप्ताह में जवाब
माँगा है. कोर्ट ने कहा है, "सज़ा पाने वाला खुद चुनाव नहीं लड़ सकता लेकिन उसके
पार्टी पदाधिकारी बने रहने या नई पार्टी बनाने पर कोई रोक नहीं. एक अपराधी
ये तय करता है कि चुनाव में कौन लोग खड़े होंगे. कानून में ये बड़ी कमी है." इसके बाद सरकार ने जवाब देने के लिए समय मांगा तो
सुप्रीम कोर्ट ने तीन हफ्ते की मोहलत देते हुए 26 मार्च की अगली सुनवाई तक
जवाब देने को कहा.
हालांकि, इस मामले की पिछली सुनवाई में
कोर्ट ने कहा था कि वो सजायाफ्ता लोगों को पार्टी बनाने से रोकने पर सुनवाई
नहीं करेगा. तब कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दल बना कर अपने विचार लोगों
तक पहुंचाने से किसी को नहीं रोका जा सकता. कोर्ट ने याचिका के सिर्फ एक
बिंदु को सुनवाई लायक माना था. जिसमें चुनाव आयोग को पार्टियों का पंजीकरण
रद्द करने का अधिकार देने की बात कही गई थी. इसका जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने कहा है
कि वो पार्टियों का रजिस्ट्रेशन तो करता है, लेकिन चुनावी नियम तोड़ने वाली
पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई का उसे अधिकार नहीं है. इसके लिए कानून में
बदलाव किया जाना चाहिए. आयोग ने ये भी बताया है कि वो 20 साल से
केंद्र सरकार से कानून में बदलाव का अनुरोध कर रहा है. लेकिन सरकार ने इस
मसले पर सकारात्मक रवैया नहीं दिखाया है. केंद्र सरकार ने अब तक मामले में
जवाब दाखिल नहीं किया है. इस वजह से सुनवाई टल गई. कोर्ट ने सरकार से जल्द
जवाब देने को कहा है.
उल्लेखनीय है कि इन दिनों सुप्रीम कोर्ट
सजायाफ्ता नेताओं के पार्टी प्रमुख बनने से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहा
है. इस बारे में कोर्ट ने कहा कि जो खुद चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो चुका
है, वह कैसे उम्मीदवार चुन सकता है. कोर्ट ने कहा कि यह स्कूल या
हॉस्पिटल चलाने का मामला नहीं है. जब बात देश का शासन चलाने की आती है, तो
मामला अलग हो जाता है. सजायाफ्ता लोगों के पार्टी पदाधिकारी बने
रहने पर कोर्ट के सवाल के बाद ये साफ है कि अब अदालत इस बिंदु पर भी विचार
करेगा. जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक, 2 साल से ज़्यादा की सज़ा पाने वाला
शख्स चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाता है. ये अयोग्यता सज़ा काटने के बाद भी 6
साल तक बनी रहती है. लेकिन ऐसे लोगों के राजनीतिक पार्टी का नेता बने रहने
और कोई पाबंदी नहीं है.
No comments:
Post a comment