जम्मू-कश्मीर में छह महीने का राज्यपाल शासन पूरा होने के बाद 19 दिसंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. केंद्र सरकार ने राज्य के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के प्रस्ताव के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया है. जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के साथ ही सभी वित्तीय अधिकार संसद के पास चले गए. राज्यपाल को राज्य में किसी भी बड़े नीतिगत फैसले के लिए पहले केंद्र से अनुमति लेनी होगी. वह अपनी मर्जी से कोई बड़ा फैसला नहीं ले पाएंगे. जून 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस लिया था, जिसके कारण जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी सरकार गिर गयी थी. इसके बाद राज्य में राज्यपाल शासन लागू हुआ था.
चूंकि जम्मू-कश्मीर का संविधान अलग है, इसलिए जम्मू-कश्मीर के संविधान 92 के अनुसार राज्य की वैधानिक मशीनरी कार्यशील न होने के कारण 6 महीने तक राज्यपाल शासन लागू होता है. इसके तहत विधायिका की तमाम शक्तियां राज्यपाल के पास होती हैं. छह महीने की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है. इसके अलावा यदि चुनाव नहीं होते हैं, तो राष्ट्रपति शासन को छह महीने और बढ़ाया जा सकता है. जम्मू-कश्मीर में 22 साल बाद राष्ट्रपति शासन लागू हो रहा है. इससे पहले साल 1990 से अक्टूबर 1996 तक जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन रहा था.
गौरतलब है कि कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस के समर्थन के आधार पर पीडीपी ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने का दावा पेश किया था, जिसके बाद राज्यपाल ने 21 नवंबर 2018 को 87 सदस्यीय विधानसभा भंग कर दी थी. राज्यपाल ने यह कहते हुए विधानसभा भंग कर दी कि इससे विधायकों की खरीदो फरोख्त होगी और स्थिर सरकार नहीं बन पाएगी. अगर राज्य में चुनावों की घोषणा नहीं की गई तो वहां राष्ट्रपति शासन अगले छह महीने तक चलेगा.
राष्ट्रपति शासन में किसी राज्य सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है और राज्य प्रत्यक्ष संघीय शासन के अधीन आ जाता है. भारत के संविधान का अनुच्छेद-356, केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है. राष्ट्रपति शासन उस स्थिति में भी लागू होता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो. इसे राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है, लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किये जाते हैं. प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल आम तौर पर सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं.
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