दुनिया भर में 16 अक्टूबर 2017 को विश्व खाद्य दिवस मनाया गया. वर्ष 2017 के लिए इस दिवस
का विषय ‘प्रवास का भविष्य बदलें, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास में
निवेश करिए’ (Change the future of migration। Invest in food security and
rural development) है. पाठकों को बता दे की विश्व खाद्य दिवस सर्वप्रथम
16 अक्टूबर 1981 को आयोजित किया गया था. संयुक्त राष्ट्र संघ के इस दिवस के मनाने का उद्देश्य यही है कि
भूख से कम कम मौते हो, ये संस्थाये खाद्य उद्पादन के लिये आधुनिक खेती,या
वैज्ञानिक खेती और आधुनिक उपकरणो का इस्तेमाल किया जाय जिससे की अधिक
उत्पादन हो और भुखमरी की समस्या कम हो सके प्रत्येक वर्ष अलग-अलग थीम के साथ
मनाए जाने वाले इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य विश्व में भुखमरी खत्म
करना. वर्तमान में यह विश्व के लगभग 150 देशों में निर्धनता व भूख के लिए
जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है. अधिकतर पारिवारिक किसानों को फसलों
के लिए पर्याप्त भंडारण, अच्छा बीजों की, परिवहन तथा अच्छी तरह क्रियाशील
बाजार साथ ही वित्तपोषण की कमी से झूझना पड़ता हैं.
भुखमरी में भारत की स्थिति:
भुखमरी में भारत की स्थिति:
भारत जैसे विकासशील देश अनाज की कोई कमी नही है हम रोज खबरें
पढ़ते है कि गोदाम में रखा अनाज सड़ रहा है या सड़ गया, या उसे फेका जा रहा
है लेकिन आपको इक रिपर्ट दंग कर देगी की भारत में बच्चो में 47% बच्चे
कुपोषण के शिकार है, यानी उन्हे उर्जा युक्त भोजन नही मिल पाता. हम एक ऐसे देश के निवासी है जहां बड़ी संख्या में लोग भूख और कुपोषण के
शिकार हैं. हो सकता है यह बात लोगों को बुरी लगे लेकिन आंकड़े यही हकीकत
बयां करते हैं. भारत को वैश्विक महाशक्ति और वैश्विक गुरु बनाए जाने के
जुमलों के बीच आई एक रिपोर्ट हमारी पोल खेलती है. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) की ओर से वैश्विक
भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) पर जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है
कि दुनिया के 119 विकासशील देशों में भूख के मामले में भारत 100वें स्थान
पर है. इससे पहले 2016 की रिपोर्ट में भारत 97वें स्थान पर था. यानी इस
मामले में साल भर के दौरान देश की हालत और बिगड़ी है और भारत को ‘गंभीर
श्रेणी’ में रखा गया है. आईएफपीआरआई के अनुसार समूचे एशिया में सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान
उससे पीछे हैं. यानी पूरे एशिया में भारत की रैंकिग तीसरे सबसे खराब स्थान
पर है. भूख से निपटने में भारत अपने पड़ोसी देशों से काफी पीछे रह गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक चीन (29वें), नेपाल (72वें), म्यांमार (77वें),
श्रीलंका (84वें) और बांग्लादेश (88वें) स्थान पर हैं.
वैश्विक भूख सूचकांक चार संकेतकों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया
जाता है. ये हैं- आबादी में कुपोषणग्रस्त लोगों की संख्या, बाल मृत्युदर,
अविकसित बच्चों की संख्या और अपनी उम्र की तुलना में छोटे कद और कम वजन
वाले बच्चों की तादाद.
आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पांच साल तक की उम्र
के बच्चों की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा अपने कद के मुकाबले बहुत कमजोर
है. इसके साथ ही एक-तिहाई से भी ज्यादा बच्चों की लंबाई अपेक्षित रूप से कम
है. भारतीय महिलाओं का हाल भी बहुत बुरा है. युवा उम्र की 51 फीसदी
महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं यानी उनमें खून की कमी है. गौरतलब है कि हमारे सरकारी आंकड़े भी कुछ इससे इतर बात नहीं करते हैं.
इसी साल अप्रैल महीने में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह
कुलस्ते ने संसद को बताया था कि देश में 93 लाख से ज़्यादा बच्चे गंभीर
कुपोषण के शिकार हैं. उन्होंने बताया कि भारत सरकार की एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य
सर्वे (एनपीएसएस) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, देश में कुल 93.4 लाख बच्चे
गंभीर रूप से कुपोषण (सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रिशन- एसएएम) के शिकार हैं.
इसमें से 10 प्रतिशत को चिकित्सा संबंधी जटिलताओं के वजह से एनआरसी में
भर्ती की ज़रूरत पड़ सकती है. एक आंकड़े के मुताबिक आज देश में 21 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं.
दुनिया भर में ऐसे महज तीन देश जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान हैं, जहां
20 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं.
इसका साफ मतलब यह है कि तमाम योजनाओं के ऐलान और बहुत सारे वादों के
बावजूद अगर देश में भूख व कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या ये है तो
योजनाओं को लागू करने में कहीं न कहीं भारी गड़बड़ियां और अनियमितताएं हैं. एक बात और 12 साल पहले 2006 में जब पहली बार यह सूची बनी थी, तब भी
हमारा स्थान 119 देशों में 97वां था. जाहिर है, 12 साल बाद भी हम जहां थे,
वहीं पर खड़े हैं. यानी इस बीच भारत में कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा
सच्चाई में कोई भी बदलाव नहीं आया है. वैसे यह पहली रिपोर्ट नहीं हैं जो भुखमरी को लेकर इस कटु सच्चाई से रूबरू कर रही है. 2016 में राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (एनएनएमबी) के एक सर्वेक्षण
में भी यह बात सामने आई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि ग्रामीण भारत में
जहां लगभग 70 फीसदी लोग रहते हैं, वहां लोग स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक
का कम उपभोग कर रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि ग्रामीण भारत का खान-पान अब उससे भी कम हो गया
है, जैसा 40 वर्ष पहले था. इसके अनुसार, 1975-79 की तुलना में आज औसतन
ग्रामीण भारतीय को 500 कैलोरी, 13 ग्राम प्रोटीन, पांच मिलीग्राम आयरन, 250
मिलीग्राम कैल्शियम व करीब 500 मिलीग्राम विटामिन-ए कम मिल रहा है. इसमें कहा गया है कि औसतन तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चे, प्रतिदिन 300
मिलीलीटर दूध की बजाय 80 मिलीलीटर दूध का उपभोग करते हैं. यह आंकड़े बताते
हैं कि क्यों इसी सर्वेक्षण में 35 फीसदी ग्रामीण पुरुष और महिलाएं कुपोषित
और 42 फीसदी बच्चे कम वजन के पाए गए हैं. ऐसे आंकड़े हमारे आर्थिक चमक-दमक के दावों को भोथरा करते हैं, शायद
इसीलिए इस पर कोई कार्रवाई करने के बजाय सरकार ने 2015 में इस राष्ट्रीय
पोषण निगरानी ब्यूरो को ही भंग कर दिया. फिलहाल जरूरत इस बात है भुखमरी से लड़ाई में केंद्र सरकार, राज्य
सरकारें और वैश्विक संगठन अपने-अपने कार्यक्रमों को बेहतर स्वरूप और अधिक
उत्तरदायित्व के साथ लागू करें.
वैश्विक हालात भी बदतर:
हालांकि, वैश्विक स्तर पर भी आंकड़ा बद से बदतर ही हुआ है. संयुक्त
राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन का आकलन है कि पिछले 15 वर्षों में पहली बार
भूख का आंकड़ा बढ़ा है. जहां एक ओर वैश्विक खाद्य भंडार 72.05 करोड़ टन के साथ
रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रहा है, वहीं कुपोषित लोगों की संख्या 2015 में करीब
78 करोड़ थी जो 2016 में बढ़कर साढ़े 81 करोड़ हो गयी है. आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दुनिया में भुखमरी बढ़ रही
है और जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे 2030 तक भुखमरी मिटाने का
अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य भी खतरे में पड़ गया है. कुल आबादी के लिहाज से देखें
तो एशिया महाद्वीप में भुखमरी सबसे ज्यादा है और उसके बाद अफ्रीका और
लैटिन अमेरिका का नंबर आता है.
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