प्रसिद्ध कथाकार
दूधनाथ सिंह का गुरुवार देर रात निधन हो गया. पिछले कई दिनों से वह
इलाहाबाद के फीनिक्स अस्पताल में भर्ती थे. कैंसर से पीड़ित दूधनाथ सिंह को
बुधवार रात दिल का दौरा पड़ा था. उन्हें वेंटीलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया
था जहां उन्होंने गुरुवार देर रात 12 बजे अंतिम सांस ली. पिछले साल अक्तूबर माह में तकलीफ बढ़ने पर दूधनाथ
सिंह को नई दिल्ली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में दिखाया गया. जांच
में प्रोस्टेट कैंसर की पुष्टि होने पर उनका वहीं इलाज चला. 26 दिसंबर को
उन्हें इलाहाबाद लाया गया. दो-तीन दिन बाद तबीयत बिगड़ने पर उन्हें फीनिक्स
अस्पताल में भर्ती कराया गया था. तब से उनका वहीं इलाज चल रहा था.
गौरतलब है कि मूल रूप से बलिया के रहने वाले दूधनाथ सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए किया और यहीं वह हिंदी के अध्यापक नियुक्त हुए. 1994 में सेवानिवृत्ति के बाद से लेखन और संगठन में निरंतर सक्रिय रहे. निराला, पंत और महादेवी के प्रिय रहे दूधनाथ सिंह का आखिरी कलाम 'लौट आओ घर' था. 'सपाट चेहरे वाला आदमी', 'यमगाथा', 'धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे' उनकी प्रसिद्ध रचनाएं थीं. उन्हें उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान भारत भारती व मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान मैथिलीशरण गुप्त से सम्मानित किया गया था
गौरतलब है कि मूल रूप से बलिया के रहने वाले दूधनाथ सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए किया और यहीं वह हिंदी के अध्यापक नियुक्त हुए. 1994 में सेवानिवृत्ति के बाद से लेखन और संगठन में निरंतर सक्रिय रहे. निराला, पंत और महादेवी के प्रिय रहे दूधनाथ सिंह का आखिरी कलाम 'लौट आओ घर' था. 'सपाट चेहरे वाला आदमी', 'यमगाथा', 'धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे' उनकी प्रसिद्ध रचनाएं थीं. उन्हें उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान भारत भारती व मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान मैथिलीशरण गुप्त से सम्मानित किया गया था
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