भारत में रुपए का प्रचलन कब शुरू हुआ था, कहां छपता है करंसी नोट और इससे
जुड़े कुछ अन्य रोचक और इंटरेस्टिंग फैक्ट्स के बारे में हम आपको बता रहे
हैं, जिसके बारे में शायद ही आप जानते हों....भारत में रुपया शब्द का प्रयोग सबसे पहले शेर शाह सूरी ने अपने शासन
(1540-1545) के दौरान किया था. नोटों को छापने का काम भारतीय रिजर्व बैंक
(आरबीआई) और सिक्कों को ढालने का काम भारत सरकार करती है. सबसे पहले वाटर
मार्क वाला नोट 1861 में देश में छपा था. भारत में सबसे पहले 1954 में 10,000, 5,000 हजार और 1000 रुपए के नोट
सर्कुलेशन में आए थे, जिसे सरकार ने ब्लैकमनी रोकने के लिए 16 जनवरी, 1978
में बंद कर दिया था. इसके 22 साल बाद सरकार ने 1000 रुपए के नोट साल 2000
में सर्कुलेशन के लिए मार्केट में जारी किए. भारतीय करंसी रुपए पर हिंदी और
अंग्रेजी के अलावा 15 भाषाओं का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा भारत सहित
आठ देशों की करंसी को रुपया कहा जाता है.
भारतीय करंसी रुपए तैयार करने के लिए आरबीआई द्वारा कॉटन से बने कागज और
विशेष तरह की स्याही का प्रयोग होता है. इसमें कुछ कागज का प्रोडक्शन
महाराष्ट्र के करंसी नोट प्रेस और अधिकांश मध्यप्रदेश के होशंगाबाद पेपर
मिल में होता है.। इसके अलावा दुनिया के चार अन्य देशों में तैयार होता है
भारती नोट का कागज. नोट छापने के लिए जिस ऑफसेट स्याही का प्रयोग होता है,
उसको मध्यप्रदेश के देवास बैंकनोट प्रेस में बनाया जाता है. वहीं, नोट पर
जो उभरी हुई छपाई नजर आती है उसकी स्याही सिक्किम में स्थित स्विस फर्म की
यूनिट सिक्पा में तैयार की जाती है. भारतीय करंसी रुपए की छपाई के लिए कागज मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के अलावा दुनिया के चार अन्य देश से भी मगांए जाते हैं.
1. फ्रांस की अर्जो विगिज
2. अमेरिका पोर्टल
3. स्वीडन का गेन
4. पेपर फैब्रिक्स ल्युसेंटल
देश में चार बैंक नोट प्रेस, चार टकसाल और एक पेपर मिल है. जिसमें नोट
प्रेस देवास (मध्य प्रदेश), नासिक (महाराष्ट्र), सालबोनी (पश्चिम बंगाल)
और मैसूर (कर्नाटक) में हैं. देवास नोट प्रेस में साल में 265 करोड़ रुपए के नोट छपते हैं. जिसमें
20, 50, 100, 500, रूपए के नोट छापे जाते हैं. मध्यप्रदेश के देवास में ही
नोटों में प्रयोग होने वाली स्याही का प्रोडक्शन होता है. करंसी प्रेस नोट नासिक में साल 1991 से 1, 2, 5, 10, 50, 100 रुपए के
नोट छापे जाते हैं. पहले यहां सिर्फ 50 और 100 रुपए के नोट ही छापे जाते
थे। लेकिन, नासिक में 2000 और 500 के नए नोट भी छापे जा रहे हैं. मध्यप्रदेश के ही होशंगाबाद में सिक्योरिटी पेपर मिल है. नोट छपाई के
पेपर होशंगाबाद और विदेश से आते हैं. 1000 रुपए के नोट मैसूर में छपते हैं.
नोट छापने से पहले विदेश और होशंगाबाद से आई पेपर शीट को एक खास मशीन
सायमंटन में डाली जाती है. इसके बाद एक अन्य मशीन जिसे इंटाब्यू कहा जाता
है उससे कलर किया जाता है. इसके बाद पेपर शीट पर नोट छप जाते हैं. इस
प्रक्रिया के बाद अच्छे और खराब नोट की छटनी की जाती है. एक पेपर शीट में
करीब 32 से 48 नोट होते हैं. नोट छाटने के बाद उस पर चमकीली स्याही से
संख्या मुद्रित की जाती है. जब कोई नोट पुराना हो जाता है या फिर से मार्केट में सर्कुलेशन में
लाने योग्य नहीं रहता है तो उसे बैंकों के जरिए जमा कर लिया जाता है. इन
नोटों को फिर से मार्केट में नहीं भेजकर आरबीआई इसे नष्ट कर देती है. पहले
इन नोटों को जला दिया जाता था. लेकिन, पर्यावरण को होने वाले नुकसान को
ध्यान में रखते हुए आरबीआई इन नोटों को हाल में ही विदेश से 9 करोड़ रुपए
की लागत से आयात की गई मशीन से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है, जिसे
गलाकर ईंट बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल कई कामों में होता है.
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