फ्रांस
के कान फिल्म महोत्सव में भारतीय मंडप का उद्घाटन सत्र आयोजित किया गया.
इस वर्ष भारतीय प्रतिनिधिमंडल का एजेंडा देश की फिल्मों में विविधता को
प्रदर्शित करने के साथ ही अन्य विभिन्न देशों के साथ सहयोग बढ़ाना है. फ्रांस
में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा ने कहा कि भारत में इस समय
प्रौद्योगिकी और अर्थव्यवस्था में असाधारण परिवर्तन हो रहे हैं और इस
प्रगति को भारतीय सिनेमा में प्रदर्शित किया गया है. जाने माने
अभिनेता शरद केलकर की मेजबानी में भारतीय प्रतिनिधिमंडल में फ्रांस में
भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा, सूचना और प्रसारण मंत्रालय में
संयुक्त
सचिव अशोक कुमार परमार, लेखक, कवि और केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के
अध्यक्ष प्रसून जोशी, केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की सदस्य वाणी
त्रिपाठी टिक्कू, निर्माता और निर्देशक, मार्च दू फिल्म महोत्सव, कान फिल्म
मार्केट के कार्यकारी निदेशक जेरोम पैलार्ड, फिल्म अभिनेत्री हुमा कुरैशी,
फिल्म निर्माता शाजी करून, जानू बरुआ, भरत बाला शामिल थे.
भारत और
फ्रांस के सिनेमा के बीच समन्वय के बारे में वाणी त्रिपाठी टिक्कू ने कहा
कि भारत के कान फिल्म महोत्सव और फ्रांस के फिल्म उद्योग के साथ बहुत अच्छे
संबंध हैं. उन्होंने कहा कि हाल ही तमाशा और बेफिक्रे जैसी फिल्मों की
शूटिंग इस क्षेत्र में की गई थी और इनके कथानक में भी दोनों देशों के बीच
की समानता नजर आई थी. उद्घाटन संबोधन में प्रसून जोशी ने कहा, "हमें
ऐसे युवा फिल्मकारों तक पहुंच बनानी चाहिए जो कान जैसे फिल्मोत्सवों में
नहीं पहुंच पाते हैं. हमें अधिक से अधिक फिल्म निर्माताओं की मदद के लिए
पूरे विश्व में लघु कान फिल्मोत्सव आयोजित करने चाहिए."
भारत और फ्रांस के
बीच सह-निर्माण के अवसरों का पता लगाने के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल की
यूनीफ्रांस की महानिदेशक ईसाबेल जिओदानो, अंतर्राष्ट्रीय विभाग, सीएनसी,
फ्रांस के निदेशक एम लोईक वोंग, फिल्म फ्रांस की सीईओ वैलेरी एल
एपिन-कर्निक के साथ बैठक हुई. इस दौरान ब्राजील, फिलीपींस,
ऑस्ट्रिया, नॉर्वे, स्वीडन, ताईवान, कनाडा और न्यूजीलैंड के साथ भी सहयोग
के अवसर तलाशने के लिए चर्चा की गई. इन देशों के फिल्म आयुक्तों ने भारत के
साथ सह-निर्माण के अवसरों और चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया. विभिन्न
भारतीय स्टूडियो और प्रोडक्शन हाउस के प्रमुखों के साथ भी चर्चा हुई. इस
दौरान विचार-विमर्श किया गया कि विभिन्न भाषाओं की फिल्मों को कैसे अधिक
व्यवहार्य बनाया जाए और देश में सरकार फिल्म निर्माताओं की क्या मदद कर
सकती है.
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